भीड़ में भी न जाने क्यों अकेली-सी हूँ
ये उम्र ऐसी है या फिर कोई बदलाव
पर आजकल खुद के लिए ही पहेली-सी हूँ
मैं मुस्कुराती हूँ
पर खुश नहीं
लगता है
अपने में ही रो रही हूँ शायद
खुद को ही कहीं खो रही हूँ शायद
रेत के जैसे
कभी हौले-हौले
तो कभी तेजी से
मुट्ठी से मेरी
फिसल रही है ज़िन्दगी
ना ख्वाहिश हैं
ना कोई शिकायतें
मानो उम्मीदों से भी
दूर हो रही हूँ शायद
खुद को ही कहीं खो रही हूँ शायद
बहुत खुब
ReplyDeleteVery nice
DeleteMy whatsup no 7610432541 ish par or pyari si Kavita ki line bejna aap thanks
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