Monday, September 2, 2019

रविवारी- हर चेहरे में कहानियों का बाज़ार

रविवारी बाज़ार में खींची गयी एक तस्वीर


रविवारी.... 
जहां आपको घर से लेकर बाजार की हर छोटी बड़ी चीजें मिल जाएंगी, 
जहां आप किताबें हों या फर्नीचर, सब सैकेंड हैण्ड खरीद सकते हैं 
जहां पशु भी मिलते हैं और पशुओं का चारा भी 
शादियों के कुछ ज़रूरी सामान- संदूक, बक्सा, कांसे-पीतल और स्टील के बर्तन भी 
यहां किसी भी एंटीक चीज़ को नया रंग नहीं दिया जाता 
और न ही सुगढ़ता का कोई परिचय है 
बेतरतीब-सी बिखरी हुई चीजें 
बोली लगाते दूकानदार और
मोल भाव करती एक भीड़
अनेकों चेहरे दिखेंगे, पसीने से तर 
कोई हंसता हुआ तो किसी के माथे पर शिकन की लकीरें
कहीं थकन के बादल तो कहीं उत्साह उमंग 
कोई चाय की चुस्की के साथ 
कोई पुदीने वाले निम्बू पानी के साथ 
कोई दालवडे का स्वाद लेते हुए,
 तो वो एक बूढ़ी अम्मा 
जो चारपाई पर कुछ पुराने से कपड़े बिखेर कर बैठी है बेचने को, 
अपने पल्लू में चेहरा ढांपकर, हौले-हौले चावल खाते हुए 
इतनी सी ही तो कहानी है 'रविवारी' की 
बस इतनी सी, नहीं इतनी सी नहीं है 
जनाब शतकों का इतिहास है
और यकीन मानिए बहुत ही खास है 
सुना है कभी साबरमती के किनारे लगा करता था ये बाज़ार 
और आज 'रिवर फ्रंट मार्किट' हो गया है 
साबरमती घटती गयी और बाज़ार बढ़ता गया 
'सॉफिस्टिकेटेड' लोगों को शायद ये भीड़-भाड़ वाली जगह लगे 
और किसी एंटीक लवर को जादुई खज़ाना 
तो ज़रूरतमंदों के लिए उनका सुपर मॉल 
और मेरे जैसों को शायद उनकी लेखनी का सुकून मिले यहां 
जहां जितनी दूर नज़र जाये बस ये बाज़ार ही बाज़ार नज़र आता है!

रविवारी- हर चेहरे में कहानियों का बाज़ार

रविवारी बाज़ार में खींची गयी एक तस्वीर रविवारी....  जहां आपको घर से लेकर बाजार की हर छोटी बड़ी चीजें मिल जाएंगी,  जहां आप किताब...