Friday, December 28, 2018

हम हैं अभी, मिस बेकर



कभी-कभी लगता है कि अगर वो ग्रेजुएशन के 
आखिरी साल के उन कुछ आखिरी महीनों में
मैं और तू... अरे मतलब 'हम'... 
वो करोल बाग़ की सड़कें न छानते 
या फिर
वो चाय वाले का मेनू याद है
मस्त था ना.
अरे यार, चाय...
मुझे लगता है चाय और हिंदी...
इन दो चीज़ों ने दोस्ती के रंग को और गहरा कर दिया
और वैसे भी हम दोनों की पहली मोहब्बत है चाय 
और बाकी सब ... 'दूसरा फैसला' है
हमारी वो ख्वाहिशें... 
जिनका पुलाव जेएनयू की कैंटीन में पकना शुरू हुआ 
और अभी भी सफरनामे पर है क्योंकि...
ख्वाहिशों का सफर शायद मंजिल से भी ज्यादा खुबसूरत है
है ना!
एचसीयू की बातें नहीं करूंगी 
क्योंकि...
फिर वक़्त जैसे रुक ही जाएगा 
पर कलम चलती रहेगी
अभी के लिए बस इतना ही कि 'शुक्रिया'
शुक्रिया...
कभी-कभी मुझ पर मुझसे भी ज्यादा भरोसा करने के लिए
और कुछ हद तक मुझे मेरे बारे में सोचना सिखाने के लिए
मिस बेकर या फिर मिस क्वीन पटेल.. 
"ना जन्म से, ना रक्त से
कुछ रिश्ते मिल जाते हैं वक़्त से"
माना कि तुम बहुत मजबूत हो... 
माना कि तुम्हें खुद को संभालना आता है 
मान लिया मोहतरमा कि 
'तुम... तुम हो'
पर फिर भी बस इतना ही कहना है कि 
अगर कभी पलकें छलकना चाहें 
तो याद रखना कि मैं हूँ...
अगर कभी चलते-चलते थक जाओ 
तो याद रखना कि मैं हूँ...
और जब दिल ढेर सारी बातें करना चाहे तो... 
मैं सुनने में भी अच्छी हूँ
पता तो होगा ही तुम्हे.
बस तू याद रखना कि
मैं हूँ अभी... तुम हो अभी 
और इसलिए 
'हम' हैं अभी!

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