टूटकर चाहे बिखरूँ
फिर भी चलना है
गिरूँ हजारों बार सही
हर बार संभलना है
बेटा नहीं बेटी हूँ
तो पल पल खुद को साबित करना है
मुझे चलना है
लड़की हूँ तो मान बैठे हैं कि कमजोर हूँ
सो कुछ बदलना है तो
खुद को साबित करना है
नये रंगों में रंगना है,
हर सांचे में ढलना है
माज़ी का तो पता नहीं
पर कल को बदलना है
मुझे चलना है
माँ कहती है,
कि कुछ अलग है मुझ में,
काश मैं उनका बेटा होती
बेटा नहीं,
बेटे जैसे नहीं,
मैं बेटी हूँ
तो काबिल हूँ
अब ये उनको समझना है
थकना नहीं,
रूकना नहीं,
बस बढ़ना है
सपनों के लिए अपनों से तो क्या
अपने आप से भी लड़ना है,
पर मुझे चलना है.
Mam I'm become a fan of yours.
ReplyDeleteI read your poem"wo Beti hai"
& This one "mujhe chalna h"
+ 1��
@nitin mehra
Thank you
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