कभी अदरक के तीखेपन के साथ,
तो कभी इलायची की महक वाली चाय,
काली मिर्च, लौंग की धसक,
तो कभी कुल्हड़ वाली चाय
गाँव के आंगन में चूल्हे पर चढ़ी,
धीमी-धीमी आँच पर पकी वो गुड़ वाली चाय
या फिर तेज गैस पर उबाले लेने वाली
वो हाफ कटिंग, कितली वाली चाय,
किसी के लिए सुबह जागने का सहारा है
तो किसी की थकन मिटाने वाली चाय,
घर की रसोई में भरती कभी रिश्तों में गर्माहट,
तो कभी नुक्कड़ पर दिल के रिश्ते बनाने वाली चाय!!
तस्वीर साभार: भरत बोराणा